ऑक्यूपाय युजीसी ! ऑक्यूपाय वालस्ट्रीट ! ऑक्यूपाय आल स्ट्रीट !
– दयानंद कनकदंडे
– Dayanandk77@gmail.com
नॉन-नेट स्कॉलरशिप के दुरुपयोग एवं अपारदर्शिता का कारण देकर युजीसी द्वारा स्कॉलरशिप को खत्म करने कि घोषणा के बाद ही दिल्ली के केंद्रीय विश्वविद्यालयो के छात्रो का गुस्सा इस निर्णय के विरोध मे फूट पडा .. फंड कट एवं नॉन नेट फेलोशिप खत्म करणे के निर्णय के विरोध में युजीसी दफ्तर का घेराव करते हुये occupy UGC आंदोलन शुरू हुआ और इस निर्णय को वापस लेने,फेलोशिप कि रक्कम बढाने एवं इस योजना का राज्य के विश्वविद्यालयो में विस्तार करणे कि मांगो के साथ यह आंदोलन पुलीस द्वारा बारबार पीटे जाने,पुलिस हिरासत में रखे जाने के बावजुद दिल्ली से निकलकर भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयो में फैलने लगा है ..
पिछले साल भर मे कलकत्ता,चेन्नई,पुणे और अब दिल्ली जैसे महानगरो मे रह्नेवालो छात्रो के गुस्सो का इजहार ऐसे अनेको मौको पर दिखायी पडा है लेकीन कोई भी असंतोष शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे बदलावो को लेकर समग्रता के साथ अपनी बात रखणे में नाकामयाब सा दिखायी पडा है,लेकीन इस आंदोलन और आंदोलन के दरमियान इसकी देशभर हुयी पहुंच को देखते हुये इस सवाल को बहस के केंद्र मे लाने का अवसर जरूर प्राप्त हुआ है.
१६ मई २०१५ के दिन मोदी के सत्ता पर आने की परीघटना एक राजनीतिक परीघटना है जिसने आर्थिक सुधारो का अधिकृत दक्षिणपंथी मोड लिया है.. वर्तमान सरकार शिक्षा को पुरी तरह से बाजार कि वस्तू बना देने के लिए कदम उठा रही है ,इसके विरोध मे जरूर लढना चाहिये लेकीन यह भी नही भूलना चाहिए कि,यूपीए १ के दौरान जो आर्थिक सुधार हुए जिसमे जमीन हथियाने के लिए बदनाम सेज कानून भी है, उसके लिए वाम मोर्चा अपनी जिम्मेवारी से नही बच सकता. occupy UGC आंदोलन ने घोषणा कि है… Education not for sale .. शिक्षा बाजार कि वस्तू नही है .. यह ऐलान अपने आप मे बहुत ही सकारात्मक है लेकीन शिक्षा बाजार कि वस्तू नही है तो, फिर क्या है …? इस सवाल के जवाब को खोजे बिना हम आगे की राह को नही पकड सकते है .
विश्व व्यापार संगठण के साथ भारत ने देश की कृषि से लेकर शिक्षा सबको बाजार कि वस्तू बना देने का अनुबंध किया है. भारत द्वारा GAAT समझौते पार हस्ताक्षर किए जाने के बाद से ही कृषि से लेकर शिक्षा तक सभी चीजो को बाजार के लिए खोल देने का दबाव है.विश्व स्तर पर जितने भी देशो ने इस अनुबंध पर हस्ताक्षर किए है उन सभी को शिक्षा के क्षेत्र को बाजार के लिए खोल देने का दबाव है.ज्ञान का मतलब विश्वविद्यालयो मे दि जानेवाली शिक्षा के साथ साथ उससे भी व्यापक अर्थो मे ज्ञान को बाजार कि वस्तू बना देने कि बात है.. ऐसे प्रावधान भारत मे नजदीकी समय में अंमल मे लाये जायेंगे तब छात्र ग्राहको के रूप मे तब्दील हो जायेंगे और विश्वविद्यालय मॉल मे. युजीसी द्वारा लिया गया फंड कट का निर्णय इसकी झलक भर है.
भारत के संदर्भ मे इसका दूरगामी असर दलित,बहुजन,आदिवासी एवं स्त्री शिक्षा पर होगा. आधुनिक काल मे महात्मा फुले,सावित्रीबाई फुले से लेकर डॉ.आंबेडकरजी के संघर्ष परिणामस्वरूप शिक्षा के क्षेत्र मे इन तबको का प्रवेश सुनिच्छित हो सका था. साथ ही विश्व स्तर पर रशियन क्रांती कि वजह से मिली मेहनतकश चुनौती कि वजह से पुंजीवाद को कल्याणकारी राज्य को चलाना आवश्यक हो गया था. उच्च शिक्षा,संशोधन आदी के क्षेत्र मे अभिजनो कि दादागिरी रही है. कल्याणकारी राज्य के वजूद में होने कि वजह से आरक्षण से लेकर फेलोशिप जैसे सकारात्मक प्रयासो कि वजह से दलित,बहुजन और महिलावर्ग कि दखल इस क्षेत्र में बढ रही थी, उसमे अब अवरोध खडे हो जायेंगे और उन्हे इस क्षेत्र से खदेडा जायेगा. पूंजी का स्वाभाविक चरित्र है लाभ का विस्तार. लाभ की रक्षा व बढोतरी के लिए एक संगठित शिक्षा-माफिया पनप रहा है. शिक्षा के सार्वजनिक ढांचे के अभाव में इसकी शक्ति की दाब-धौंस में नौनिहालों से लेकर विज्ञान-तकनीक, मेडिकल-इंजीनियरिंग व प्रबंधन की उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्र-अभिभावक लाचार महसूस कर रहे है. स्वतंत्रता के बाद कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना के अन्तर्गत शिक्षा के सार्वजनिक ढांचे का जिस गति से विस्तार हुआ था, उसे वैश्वीकरण के दौर में राज्य ने अपनी कल्याणकारिता की केंचुली को उतार फेका है. इसलिये अब उसके सामाजिक शास्त्र के शोध में पुंजी व्यय करणा अनिवार्य सा नही रह गया है.. वैश्वीकरण के इस दौर मे जनता कि संघठीत चुनौती दृश्यमान नही होने से वह तेजगति से सबको कुचल रहा है.इसके विरोध मे अफ्रिका,अमरिका से लेकर भारत तक इसके विरोध मे संघर्ष खडे हो रहे है एवं Occupy Wallstreet से लेकर occupy UGC के नारो के तहत संघठीत हो रहे है ,इसे Occupy All Street तक ले जाने कि जरूरत है. यही संघर्ष सबको समान शिक्षा,भोजन,आजीविका दे सकनेवाले राज्य को लाने कि दिशा में जायेगा.
ऑक्यूपाय युजीसी @ सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय,पुणे.
ऑक्यूपाय युजीसी कॉ-ओर्डीनेशन कमिटी द्वारा ९ दिसंबर को २०१५ को ऑक्यूपाय युजीसी आंदोलन स्थल से संसद भवन तक अ.भा. मोर्चा निकाला गया. मोर्चे को संसद भवन से पहले ही रोकते हुये दिल्ली पुलिस द्वारा बर्बर लाठीचार्ज किया गया. यह मोर्चा युजीसी द्वारा लिए गये नॉन नेट फेलोशिप रद्द करणे के निर्णय को वापस लेने, फेलोशिप कि रक्कम बढाने एवं इस योजना का राज्य के विश्वविद्यालयो में विस्तार करणे, विश्व व्यापार संगठन कि वार्ता से बाहर निकलने एवं १०प्रतिशत शिक्षा पार खर्च करणे कि मांग को लेकर निकाला गया था. इस मोर्चे में देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालओ के छात्र-छात्राओ,विभिन्न छात्र संगठनो के साथ युवा भारत के कार्यकर्ताओ ने भाग लिया. मोर्चे पर हुये बर्बर लाठीचार्ज के विरोध एवं ऑक्यूपाय युजीसी के समर्थन मे सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के प्रवेशद्वार पर विभिन्न छात्र-युवा संगठनो कि तरफ से एकजुटता प्रदर्शन किया गया. इस प्रदर्शन मे नव समाजवादी पर्याय,युवा भारत, लोकायत, आईसा,एसएफआई,डाप्सा के साथी शारेक हुए. प्रदर्शन के बाद युजीसी के क्षेत्रीय कार्यालय,पुणे के माध्यम से मानव संसाधन विकास मंत्रालय को ज्ञापन प्रेषित किया गया.