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Occupy UGC ! Occupy Wallstreet ! Occupy All street !

ऑक्यूपाय युजीसी ! ऑक्यूपाय वालस्ट्रीट ! ऑक्यूपाय आल स्ट्रीट !

– दयानंद कनकदंडे
– Dayanandk77@gmail.com
नॉन-नेट स्कॉलरशिप के दुरुपयोग एवं अपारदर्शिता का कारण देकर युजीसी द्वारा स्कॉलरशिप को खत्म करने कि घोषणा के बाद ही दिल्ली के केंद्रीय विश्वविद्यालयो के छात्रो का गुस्सा इस निर्णय के विरोध मे फूट पडा .. फंड कट एवं नॉन नेट फेलोशिप खत्म करणे के निर्णय के विरोध में युजीसी दफ्तर का घेराव करते हुये occupy UGC आंदोलन शुरू हुआ और इस निर्णय को वापस लेने,फेलोशिप कि रक्कम बढाने एवं इस योजना का राज्य के विश्वविद्यालयो में विस्तार करणे कि मांगो के साथ यह आंदोलन पुलीस द्वारा बारबार पीटे जाने,पुलिस हिरासत में रखे जाने के बावजुद दिल्ली से निकलकर भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयो में फैलने लगा है ..
पिछले साल भर मे कलकत्ता,चेन्नई,पुणे और अब दिल्ली जैसे महानगरो मे रह्नेवालो छात्रो के गुस्सो का इजहार ऐसे अनेको मौको पर दिखायी पडा है लेकीन कोई भी असंतोष शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे बदलावो को लेकर समग्रता के साथ अपनी बात रखणे में नाकामयाब सा दिखायी पडा है,लेकीन इस आंदोलन और आंदोलन के दरमियान इसकी देशभर हुयी पहुंच को देखते हुये इस सवाल को बहस के केंद्र मे लाने का अवसर जरूर प्राप्त हुआ है.
१६ मई २०१५ के दिन मोदी के सत्ता पर आने की परीघटना एक राजनीतिक परीघटना है जिसने आर्थिक सुधारो का अधिकृत दक्षिणपंथी मोड लिया है.. वर्तमान सरकार शिक्षा को पुरी तरह से बाजार कि वस्तू बना देने के लिए कदम उठा रही है ,इसके विरोध मे जरूर लढना चाहिये लेकीन यह भी नही भूलना चाहिए कि,यूपीए १ के दौरान जो आर्थिक सुधार हुए जिसमे जमीन हथियाने के लिए बदनाम सेज कानून भी है, उसके लिए वाम मोर्चा अपनी जिम्मेवारी से नही बच सकता. occupy UGC आंदोलन ने घोषणा कि है… Education not for sale .. शिक्षा बाजार कि वस्तू नही है .. यह ऐलान अपने आप मे बहुत ही सकारात्मक है लेकीन शिक्षा बाजार कि वस्तू नही है तो, फिर क्या है …? इस सवाल के जवाब को खोजे बिना हम आगे की राह को नही पकड सकते है .

विश्व व्यापार संगठण के साथ भारत ने देश की कृषि से लेकर शिक्षा सबको बाजार कि वस्तू बना देने का अनुबंध किया है. भारत द्वारा GAAT समझौते पार हस्ताक्षर किए जाने के बाद से ही कृषि से लेकर शिक्षा तक सभी चीजो को बाजार के लिए खोल देने का दबाव है.विश्व स्तर पर जितने भी देशो ने इस अनुबंध पर हस्ताक्षर किए है उन सभी को शिक्षा के क्षेत्र को बाजार के लिए खोल देने का दबाव है.ज्ञान का मतलब विश्वविद्यालयो मे दि जानेवाली शिक्षा के साथ साथ उससे भी व्यापक अर्थो मे ज्ञान को बाजार कि वस्तू बना देने कि बात है.. ऐसे प्रावधान भारत मे नजदीकी समय में अंमल मे लाये जायेंगे तब छात्र ग्राहको के रूप मे तब्दील हो जायेंगे और विश्वविद्यालय मॉल मे. युजीसी द्वारा लिया गया फंड कट का निर्णय इसकी झलक भर है.
भारत के संदर्भ मे इसका दूरगामी असर दलित,बहुजन,आदिवासी एवं स्त्री शिक्षा पर होगा. आधुनिक काल मे महात्मा फुले,सावित्रीबाई फुले से लेकर डॉ.आंबेडकरजी के संघर्ष परिणामस्वरूप शिक्षा के क्षेत्र मे इन तबको का प्रवेश सुनिच्छित हो सका था. साथ ही विश्व स्तर पर रशियन क्रांती कि वजह से मिली मेहनतकश चुनौती कि वजह से पुंजीवाद को कल्याणकारी राज्य को चलाना आवश्यक हो गया था. उच्च शिक्षा,संशोधन आदी के क्षेत्र मे अभिजनो कि दादागिरी रही है. कल्याणकारी राज्य के वजूद में होने कि वजह से आरक्षण से लेकर फेलोशिप जैसे सकारात्मक प्रयासो कि वजह से दलित,बहुजन और महिलावर्ग कि दखल इस क्षेत्र में बढ रही थी, उसमे अब अवरोध खडे हो जायेंगे और उन्हे इस क्षेत्र से खदेडा जायेगा. पूंजी का स्वाभाविक चरित्र है लाभ का विस्तार. लाभ की रक्षा व बढोतरी के लिए एक संगठित शिक्षा-माफिया पनप रहा है. शिक्षा के सार्वजनिक ढांचे के अभाव में इसकी शक्ति की दाब-धौंस में नौनिहालों से लेकर विज्ञान-तकनीक, मेडिकल-इंजीनियरिंग व प्रबंधन की उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्र-अभिभावक लाचार महसूस कर रहे है. स्वतंत्रता के बाद कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना के अन्तर्गत शिक्षा के सार्वजनिक ढांचे का जिस गति से विस्तार हुआ था, उसे वैश्वीकरण के दौर में राज्य ने अपनी कल्याणकारिता की केंचुली को उतार फेका है. इसलिये अब उसके सामाजिक शास्त्र के शोध में पुंजी व्यय करणा अनिवार्य सा नही रह गया है.. वैश्वीकरण के इस दौर मे जनता कि संघठीत चुनौती दृश्यमान नही होने से वह तेजगति से सबको कुचल रहा है.इसके विरोध मे अफ्रिका,अमरिका से लेकर भारत तक इसके विरोध मे संघर्ष खडे हो रहे है एवं Occupy Wallstreet से लेकर occupy UGC के नारो के तहत संघठीत हो रहे है ,इसे Occupy All Street तक ले जाने कि जरूरत है. यही संघर्ष सबको समान शिक्षा,भोजन,आजीविका दे सकनेवाले राज्य को लाने कि दिशा में जायेगा.

ऑक्यूपाय युजीसी @ सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय,पुणे.
ऑक्यूपाय युजीसी कॉ-ओर्डीनेशन कमिटी द्वारा ९ दिसंबर को २०१५ को ऑक्यूपाय युजीसी आंदोलन स्थल से संसद भवन तक अ.भा. मोर्चा निकाला गया. मोर्चे को संसद भवन से पहले ही रोकते हुये दिल्ली पुलिस द्वारा बर्बर लाठीचार्ज किया गया. यह मोर्चा युजीसी द्वारा लिए गये नॉन नेट फेलोशिप रद्द करणे के निर्णय को वापस लेने, फेलोशिप कि रक्कम बढाने एवं इस योजना का राज्य के विश्वविद्यालयो में विस्तार करणे, विश्व व्यापार संगठन कि वार्ता से बाहर निकलने एवं १०प्रतिशत शिक्षा पार खर्च करणे कि मांग को लेकर निकाला गया था. इस मोर्चे में देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालओ के छात्र-छात्राओ,विभिन्न छात्र संगठनो के साथ युवा भारत के कार्यकर्ताओ ने भाग लिया. मोर्चे पर हुये बर्बर लाठीचार्ज के विरोध एवं ऑक्यूपाय युजीसी के समर्थन मे सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के प्रवेशद्वार पर विभिन्न छात्र-युवा संगठनो कि तरफ से एकजुटता प्रदर्शन किया गया. इस प्रदर्शन मे नव समाजवादी पर्याय,युवा भारत, लोकायत, आईसा,एसएफआई,डाप्सा के साथी शारेक हुए. प्रदर्शन के बाद युजीसी के क्षेत्रीय कार्यालय,पुणे के माध्यम से मानव संसाधन विकास मंत्रालय को ज्ञापन प्रेषित किया गया.

असहिष्णुता से आगे…….!

 

२०१४ में कांग्रेसविरोधी त्सुनामी पर सवार होकर अच्छे दिनों के सब्जबाग दिखाते हुए सत्तासीन हुयी सरकार इस मोर्चे पर कुछ भी नहीं कर पायी है .. हालाँकि कॉर्पोरेट हितो को सर्वोपरी रखते हुए उसने पिछले डेढ़ साल में जिस तरह से नीतीयो को बदला है वह काबिले तारीफ है.. इससे न मध्यवर्ग से उच्चमध्यवर्ग में जाने को आतुर लोग खुश है न झुग्गी से निकलकर फ्लैट में जाने को आतुर गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले लोग..उल्टा जीवनावश्यक चीजो के दाम जिस तरह बढे है उसने लोगो को “लौटा तो वह बुरे दिन” कहने को मजबूर किया है… कुछ दिन पहले आये गुजरात पंचायत चुनावों के नतीजे कहने को भाजपा के पक्ष में है लेकिन कांग्रेस की वापसी भी उसकी नीद बिघाडनेवाली है..प्रधानमंत्री के गृह जिल्हे मेहसाना में भी भाजपा को पराभव का सामना करना पड़ा है..पाटीदार आरक्षण आन्दोलन भी इसी  जगह से शुरू हुआ था.. हो सकता है,पाटीदार आन्दोलन ने कांग्रेस की वापसी में भूमिका निभायी हो लेकिन ही वाइब्रेंट गुजरात के गुब्बारे को जरूर फोड़ा है.. मोदी दुनियाभर में सस्ते संसाधनों एवं सस्ते श्रम के उपलब्धी की गारंटी देते हुए घूम रहे है लेकिन आज की तारिख तक दुनिया २००८ के आर्थिक संकट से उभरी नहीं है..अमरीका,यूरोप,चायना सभी गर्त में फसे हुए है.. ज्यादा से ज्यादा निवेश को आकर्षित करने के लिए जितनी बेरहमी  से मोदी ने अपना बुलडोजर चलाना प्रारंभ किया है उसके असंतोष की अभिव्यक्ती के रूप में भी इन चीजो को देखा जाना चाहिए..

मई २०१४ में मीली करारी जीत के बाद पिछले सालभर में हुए विधानसभा चुनावों में दिल्ली एवं बिहार में उतनी ही करारी हार का सामना भाजपा को करना पड़ा है.. लोकसभा चुनावों के परीणामो ने इस बात पर मुहर लगा दि थी की,मंडलवाद की राजनीती के सहारे ही मोदी सता के शीर्ष पर पहुंचे थे.. दरमियान के वर्षोँ में समता की राजनीती को समरसता में बदलकर संघ ने ओबीसी चेहरे को आगे बढाया था.. वही समता की राजनीती से आगे आये मंडलवादी लालू नीतीश साम्प्रदायिकता की राह पर चल पड़े थे .. मेरी पीढी के मतदाताओ को  मोदी की विकास की गुहार अपने विकास की गुहार लगी थी इसलिए उन्होंने इतिहास की परवाह किए बगैर वर्तमान के प्रचार के पक्ष में मत दिया… साल-डेढ़ साल के सरकार के वर्तन एवं उससे देशभर में उपजी असहिष्णुता के मद्देनजर बिहार में मंडल पार्ट-२ की स्क्रिप्ट लिखने का काम किया.. इस स्क्रिप्ट को आवाज देने में लालू कामयाब हुए तो चेहरा देने में नीतीश..पुरे चुनाव की बहस में कमंडल विरोधी मंडल की बहस जोरोसे थी विकास की बहस कही भी नहीं.. बीसवी सदी पूंजीवाद के विकास की सदी के साथ साथ समाजवाद निर्माण की ओर अग्रसर मेहनतकश जनता के प्रयासों की भी रही है.. रशियन क्रांति एवं चीनी क्रांति के दबाव स्वरुप पूंजीवाद ने जो कल्याणकारी चेहरा ओढा था उसे उसने पीछले 20 सालो में मेहनतकश जनता की चुनौती के कमजोर पड़ने के फलस्वरूप फाड़ फेंका है.. ..इंदिराप्रणीत घोषित आपातकाल से लेकर आज के मोदीप्रणित अघोषित आपातकाल तक का काल इसका साक्ष्य है.इस दरमियान मेहनतकश जनता के अधिकारों का भारी संकुंचन हुआ है तथा जल जंगल जमीन की लूट बेतहाशा बढी है..

नीतीश की विकास की जो भाषा है, वह सभी जातियों में दरमियान के समय उपजे मध्यवर्ग के आकांक्षाओ की प्रतिनीधी भाषा है ..मनमोहन,मोदी,नीतीश इन सबके विकास की परिभाषा एक ही है.. सब उसी पूंजीवादी माडल की मोडलिंग करनेवाले अच्छे अभिनेता है लेकिन सामान्य मतदाता ने उन्हें कल्याणकारी राज्य की वापसी के भ्रम में अपनी हताशा से उबरने के लिए चुना है इसे भी याद रखना चाहिए..

कल्याणकारी राज्य के वापसी के भ्रम में केजरी या नीतीश को चुनने से हमें वर्तमान असहिष्णुता से थोड़ी राहत और बेरहमी से लुटे जाने में ढिलाई तो मिल सकती है लेकिन मुक्ती नहीं.. संसद के शीत सत्र में भाजपा का रवैया बिहार की हार के बाद सहिष्णु सा हो गया है.जीएसटी,रक्षा एवं अन्य क्षेत्रो में एफडीआई को लेकर कानून पास करवाने के लिए यह सहिष्णु रवैया अपनाया जा रहा है इसका सीधा अर्थ यह है की जमीन,पानी,प्राकृतिक संसाधन आजीविका का हक  छीनने की गती में ज्यादा परिवर्तन नहीं आनेवाला है.इसलिए चाहिए की हमें जल्द से जल्द राहत मिल जाने के भ्रम एवं लालू नीतीश के द्वारा हमारी लढाई लढे जाने के  भ्रम से निकलकर जमीन पर आने की जरूरत है..

_  दयानंद कनकदंडे

यूवा भारत,महाराष्ट्र चे ४ थे राज्य अधिवेशन संपन्न ..

संदिप कांबळे (अ.भा.समिती सदस्य,यूवा भारत) यांचा रिपोर्ट

युवा भारत संघटनेचे चौथे महाराष्ट्र राज्य अधिवेशन बोपोडी, पुणे येथे दि. २८ व २९ नोव्हेंबर २०१५ रोजी एकविसाव्या शतकातील तरूणाईची गोची या विषयावर पार पडले. अधिवेशनाचा उदघाटन कार्यक्रम मा. घनश्यामजी ( NHCPM राजस्थान ), मा. ज्योतीताई टिळेकर ( पिं. चिं. शहराध्यक्ष, सम्यक युवा मंच महिला आघाडी ) मा. विलास सोनवणे ( जेष्ठ राजकीय कार्यकर्ते व विचारवंत, संस्थापक सदस्य युवा भारत ) सुनील चौधरी ( जेष्ठ कार्यकर्ते युवा भारत, नागपूर ) यांच्या उपस्थितीत व दयानंद कनकदंडे ( अखिल भारत समन्वयक ) यांच्या अध्यक्षतेखाली संपन्न झाला . अधिवेशनाच्या सुरूवातीला प्रास्तविकपर भाषण वनराज शिंदे ( राज्य संयोजक महाराष्ट्र ) यांनी केले.
दोन दिवशीय अधिवेशनामध्ये एकूण चार सत्रात प्रमुख वक्त्यांनी विषयावर मांडणी करुन खुली चर्चा करण्यात आली.
१. शिक्षण व रोजगार – या विषयावर अॅड. भूषण पवार व डॉ. सुरेश सोमकुंवर
२. आमचे नातेसंबंध व रिलेशनशिप मधील गोची – किशोर मोरे व शशी सोनवणे
३. भाषेचा झालेला लोच्या व दुनिया भरचे न्यूनगंड – देवकुमार अहिरे व डॉ. दिपक पवार
४. चित्रपट, समाज व संस्कृती – मुक्ता सोनवणे, प्रशांत कांबळे, डॉ. बशारत अहमद
या सर्व वक्त्यांनी विषयावर मांडणी करून चर्चेत सहभाग घेतला.

अधिवेशनामध्ये खालील ठराव पारित करण्यात आले.

१) महाराष्ट्रातील दूष्काळी परिस्थितीवर पर्यायी उपाययोजना करण्याची मागणी करत आहे.
२) मराठी भाषेच्या विकासामध्ये महानूभाव आणि वारकरी संप्रदायाचे अमूल्य असे योगदान राहीले आहे. महानूभाव पंथ प्रवर्तक श्रीचक्रधर स्वामींनी १२ मार्च १२३४ रोजी आपले मराठी भाषेतील पहीले धर्म वचन ‘ येथ आलीया काही मरण असे’ उद्गारले तो दिवस मराठी भाषा गौरव दिवस म्हणून साजरा करण्याची घोषणा करीत आहे .
३) मराठी भाषा गौरव दिनी १२ मार्च २०१६ रोजी श्रीक्षेत्र रिद्धपूर अमरावती येथे दूसरे सकल साहीत्य सम्मेलन सर्वधर्मिय सर्वपंथीय सामाजिक परिषद व अ.भा.महानूभाव चिंतन परिषद व यूवा भारत संघटना यांचे वतीने घेण्याची घोषणा करीत आहे.
४) शासन प्रशासनाच्या क्षेत्रात मराठी वापराचे धोरण राबविण्याची, किमान प्राथमिक शिक्षण मातृभाषेेतून शिक्षण देण्याची व रिद्धपूर अमरावती येथे मराठी भाषा विद्यापीठ स्थापन करण्याची मागणी करीत आहे
५) हरियाना राज्यातील दलित हत्याकांडाचा व देशभर वाढत चाललेल्या अल्पसंख्यांक व दलितांवरील हल्ल्यांचा निषेध करत आहे.
६) पॅरिस येथील दहशतवादी हल्यात मारल्या गेलेल्या सर्वांशी हे अधिवेशन आपल्या संवेदना व्यक्त करते. दहशतवादविरोधी यूद्धाच्या नावाखाली जगभर साम्राज्यवादी शक्तीनी जे यूद्ध चालविले आहे त्याविरोधात आणि जल,जंगल जमीन व भाषा यावरील अधिकारासाठीच्या कूर्दिश जनतेच्या लढ्यास आपला पाठींबा व्यक्त करते.
७) खाण्याच्या अधिकारावर नियंत्रण आणणाऱ्या धोरणाचा निषेध करत आहे.
इत्यादी ठराव यूवा भारतच्या २८,२९ नोव्हेबर २०१५ रोजी पुण्यात संपन्न झालेल्या युवा भारतच्या चौथ्या राज्यस्तरीय अधिवेशनात पारीत करण्यात आले.

FTI व occupy UGC या विद्यार्थ्यांच्या आंदोलनाला पाठींबा व्यक्त करण्यात आला. देशभरात वाढत चाललेल्या एकूणच राजकीय आणि सामाजिक असहीष्णूतेच्या बाबत गंभीर चिंता व्यक्त करण्यात आली. समाजाच्या पातळीवर जी अभिव्यक्तीची कोंडी निर्मान झाली आहे. त्याविरोधात लढण्याचा निर्धार या अधिवेशनात व्यक्त करण्यात आला. मराठी भाषा गौरव दिनी १२ मार्च २०१६ रोजी श्रीक्षेत्र रिद्धपूर अमरावती येथे दूसरे सकल साहित्य सम्मेलन सर्वधर्मिय सर्वपंथीय सामाजिक परिषद व अ.भा.महानूभाव चिंतन परिषद व युवा भारत संघटना यांचे वतीने घेण्याची घोषणा ही यावेळी करण्यात आली.
सन २०१५ -२०१७ दोन वर्षाच्या कालावधीकरिता राज्य समिती गठीत करण्यात आली. राज्य समिती सदस्य म्हणून देवकुमार अहिरे, अॅड. भूषण पवार, प्रमोद घनवट, अमोल कांबळे, दिपक वाघाडे, अमोल गवळी यांची सर्वानुमते निवड करण्यात आली तर विनोद भूजबळ आणि डॉ. सूरेश सोमकूंवर यांची राज्य संयोजक म्हणून निवड करण्यात आली. नवनियुक्त राज्य संयोजकांचे स्वागत व अभिनंदन वनराज शिंदे व दिपक वाघाडे यांनी केले.
अधिवेशनाचा समारोप कार्यक्रम मा. शोभा करांडे ( सगुणा महिला संघटना ) जयश्री घाडी ( संस्थापक सदस्य युवा भारत ) विलास सोनवणे ( संस्थापक सदस्य युवा भारत ) इक्बाल गाझी ( अखिल भारतीय समिती सदस्य, कोलकाता ) दयानंद कनकदंडे ( अखिल भारतीय समन्वयक ) यांच्या उपस्थितीत व नवनियुक्त राज्य संयोजक विनोद भुजबळ यांच्या अध्यक्षतेखाली संपन्न झाला.

युवा भारत के ७ वे अखिल भारतीय संमेलन,प.बंगाल द्वारा पारित प्रस्ताव

 1) भूमी अधिग्रहण अध्यादेश पर प्रस्ताव

युवा भारत संघठन २००५ से जमीन हथियाने कि नीतियो के विरोध में लगातार संघर्ष करते आया है  |जनविरोधी सेझ कानून २००५ के खिलाफ युवा भारत ने महामुंबई शेतकरी (किसान) समिती बनाकर रायगढ (महाराष्ट्र) में निर्णायक लढाई खडी की.पोस्को(उडीसा)सिंगूर,नंदीग्राम,उलुबेरिया (प.बंगाल) में जमीन हथियाने कि साम्राज्यवादी नितीयो के खिलाफ संघर्ष खडा किया | सेझ के माध्यम से जल,जंगल,जमीन हथियाने कि इस प्रक्रिया में इन संघर्शो के परिणामस्वरूप २०१३ में ब्रिटीश हुकमत के जमीन अधिग्रहण कानून १८९४ में व्यापक संशोधन कर जमीन अधिग्रहण के लिए आवश्यक सार्वजनिक हित के प्रावधान को हटा दिया गया | हर प्रकार के निजी एवं सार्वजनिक परीयोजनाओ के लिए जमीन हथियाने को मान्यता देकर केवल मुआवजे व पुनर्वास के दायरे में चर्चा को सिमटा कर रख दिया | २०१३ में बनाये गए इसी उचित मुआवजा का अधिकार,पुनर्स्थापना,पुनर्वास एवं पारदर्शिता भूमी अधिग्रहण विधेयक  २०१३ में  हाल कि  सरकार ने और भी संशोधन एक अध्यादेश द्वारा किये है |

    अध्यादेश में कहा गया है कि पांच उद्देशो-सुरक्षा,रक्षा,ग्रामीण आधारभूत सरंचना,औद्योगिक कॉरिडोर और बुनियादी सामाजिक के निर्माण के लिए अनिवार्य सहमती कि उपधारा और सामाजिक प्रभाव आकलन कि शर्त भूमी अधिग्रहण के लिए आवश्यक नही होगी | अध्यादेश के मुताबिक बहुफसली सिंचीत भूमी भी इन उद्देशो के अधिग्रहित कि जा सकती है |भूमी अधिग्रहण कानून २०१३ देश के अनेक जनसंघठनो द्वारा लढे गये संघर्ष और सर्वोच न्यायालय के कई फैसलो के दबाव कि तार्किक परिणीती था | इस तार्किक परिणीती को महज एक अध्यादेश द्वारा पलट दिया गया है | इस अध्यादेश के तीन आयाम है-एक तो यह की इसमे जमीन मालीको कि सहमती कि शर्त को काफी हद तक काम कर दिया है |दुसरा,ऐसी परियोजनाओ का दायरा काफी हद तक बाधा दिया है,जिसके लिए अधिग्रहण करणे के लिए सहमती कि आवश्यकता हि नही होगी | तीसरा अब बहुफसली जमीन का भी अधिग्रहण किया जा सकेगा| इस अध्यादेश से अत्याधिक अधिग्रहण और जबरन अधिग्रहण का रास्ता साफ हो गया है |

सरकार का यह फैसला पुंजीपतीयो के पक्ष में और किसान एवं गरीबो के खिलाफ तथा अलोकतांत्रिक है | सवाल यह उठता है की,जब संसद का शीतकालीन अधिवेशन कुछ ही दिनो में आरंभ होनेवाला था तब इतनी जल्दी में अध्यादेश लाने का औचित्य क्या है? संविधान में अध्यादेश का प्रावधान आपात उपाय के रूप में किया गया है |इसलिए इसका सहारा अपवादात्मक ही लेना चाहीए लेकीन सरकार ने एक के बाद एक अध्यादेशो कि झडी लगा दी गयी है | यह प्रकार जनवादी परंपरा के संकेत और नीतियो का विडंबन और उल्लंघन है | हडबडी में अध्द्यादेश लाकर सरकार यह संदेश देना चाहती है की वह बाजारकेंद्रित आर्थिक सुधारो के लिए बहुत बैचैन है |यह हकीकत है की बाजारकेंद्रित अर्थव्यवस्था आज पुरे विश्वभर में चरमरा रही है;अमेरिकी अर्थव्यवस्था की मंदी,युरोजोन का संकट तथा चीन कि अर्थव्यवस्था की सुस्ती  इसका प्रमाण है | भारत की सरकार फीर भी आर्थिक सुधारो के उन्ही मार्गो का अनुसरण कर रही है | इसलिए विकास के  इस पुरे मॉडेल पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है |

 उद्योग के विकास के नाम पर बडे एवं भारी उद्योगो की चर्चा क्यो होती है?उद्योगो के विकास का अर्थ ग्रामीण   उद्योग  का विकास क्यो नही लिया जाता ?जिस विकास मॉडेल में कंपनीयो,निगमो की मुनाफाखोरी के लिए मानव श्रम  का शोषण हो ,जमीन एवं प्राकृतिक संसाधनो का दोहन हो तथा इससे जुडे परंपरागत किसान,आदिवासी समुदाय को उजाडे,उस विकास के मॉडेल को कैसे स्वीकार किया जा सकता है ?विकास का सही मॉडेल वही है जो मनुष्य समाज एवं  प्रकृती के साथ संगती बैठाते हुए सबका विकास सुनिश्चित करे |इसलिए भारत जैसे श्रमबाहुल्य देश में मास प्रोडक्शन की  बजाय प्रोडक्शन बाई मासेज फॉर द मासेज की नीती ही कारगर हो सकती है |जल,जंगल,जमीन,पहाड आदी प्राकृतिक   धरोहर है,लोगो के जीविका के साधन है,इन्हे बाजार की वस्तू बनाना गलत है |

 युवा भारत इस अध्यादेश का विरोध करता है | जमीन हथियाकर  मेहनतकश जनता को उसके रोजी रोटी के साधनो से,प्राकृतिक जड़ो से बेदखल करने की नीती का विरोध करता है और देशभर में चल रहे संघर्षो का समर्थन करते हुए उन्हे तेज़ करने का संकल्प घोषित करता है |

 2) भारत मे २०११ की जनगणना के अनुसार इस देश मे १६३५ भाषाए होने  की बात कही गयी है | युवा भारत का यह सम्मेलन सभी को ऊनकी मातृभाषा मे न्यूनतम प्रार्थमिक शिक्षा दिए जाने की मांग करता है|

3)भारतीय संविधान की ८ वी अनुसूची मे समावेशीत २२ भाषाओ मे प्रशासनिक एव न्यायालयीन कार्यवाही चलाने की मांग युवा भारत का सम्मेलन करता है |

4) भारत एक बहुभाषायी देश है | भारतीय संविधान  की ८वी अनुसूची मे  २२ भाषाओ को सामील किया गया है| युवा भारत के ६ वे अखिल भारतीय सम्मेलन वर्धा(महाराष्ट्र) ने महाराष्ट्र मे अमरावती जिला के रिधपुर मे मराठी भाषा का केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की मांग की है ,यह सम्मेलन संविधान की ८ वी अनुसूची मे समावेशीत २२ भाषाओ के केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करने की मांग करता है |इन सभी विश्वविद्यालयो मे साहित्य,कला,विज्ञान,सामाजिक विज्ञान का संशोधन एवं अध्ययन-अध्यापन हो तथा होणेवाले संशोधन एक दुसरी भाषा मे अनुदीत कर उपलब्ध कराने के लिए एक आंतरभारती अनुवाद केंद्र की स्थापना की जाए | 5) झारखंड पर प्रस्ताव

अ) झारखंड प्रदेश की भौगोलिक परिस्थिती को ४ राज्यो मे विभाजित किया गया है | वहा की वांशिक राष्ट्रीयता के विकास हेतु सही मायने मे झारखंडी लोगो के अस्तित्व एवं अस्मिता को दर्शानेवाले वृहद झारखंड के पुंनर्गाठण की मांग करता है |

ब) झारखंड की तरह भारत के विभिन्न आदिवासी क्षेत्रो मे कई सारी आदिवासी जनजातीयो को आज   भी शेडुल मे नही रखा गया है | जिसके कारण आदिवासी होते हुए भी उनके मौलिक अधिकारो का हणण होता है |युवा भारत मांग करता है की ऐसी आदिवासी जनजातीयो को शेडुल मे समाविष्ठ किया जाए और उनके  जल,जंगल,जमीन के मौलिक अधिकारो की रक्षा की जाए |     6)फिलिस्तीन की राष्ट्रीयता का समर्थन

     साम्राज्यवादी नीतीयो के तहत फिलिस्तीनी जनता का फिलीस्तींनी राष्ट्र का हक १९४८ से नाकारा गया है | युवा भारत फिलिस्तीन की राष्ट्रीयता के चल रहे संघर्ष का समर्थन करता है |साथ ही साथ विश्व भर मे चल रहे विभिन्न राष्ट्रीयताओ के राष्ट्रमुक्ती संघर्षो का समर्थन करता है|

  7)देशभर मे भगाना(हरियाणा)खरडा(महाराष्ट्र) आदि इलाको मे तथा अन्य इलाको मे दलित,आदिवासी,घुमंतू जनजातीयो के स्त्री-पुरुष और तृतीयपंथीयो तथा अलग-अलग धार्मिक पहचान और मान्यता अपनाने वालो के पर अत्याचारो की घटनाये बढ रही है |

 युवा भारत ऐसी अमानवीय घटनाओ की निंदा करता है और ऐसी घटनाओ को रोकने के लिए समाज जोडो अभियान तेज करणे का संकल्प करता है |